भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार अर्थात भ्रष्ट+आचार। भ्रष्ट यानी बुरा या बिगड़ा हुआ तथा आचार का मतलब है आचरण। अर्थात भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है वह आचरण जो किसी भी प्रकार से अनैतिक और अनुचित हो।
जब कोई व्यक्ति न्याय व्यवस्था के मान्य नियमों के विरूद्ध जाकर अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए गलत आचरण करने लगता है तो वह व्यक्ति भ्रष्टाचारी कहलाता है। आज भारत जैसे सोने की चिड़िया कहलाने वाले देश में भ्रष्टाचार अपनी जड़े फैला रहा है। आज भारत में ऐसे कई व्यक्ति मौजूद हैं जो भ्रष्टाचारी है। आज पूरी दुनिया में भारत भ्रष्टाचार के मामले में 94वें स्थान पर है। भ्रष्टाचार के कई रंग-रूप है जैसे रिश्वत, काला-बाजारी, जान-बूझकर दाम बढ़ाना, पैसा लेकर काम करना, सस्ता सामान लाकर महंगा बेचना आदि। भ्रष्टाचार के कई कारण है।
भ्रष्टाचार में मुख्य रिश्वत, चुनाव में धांधली, ब्लैकमेल करना, टैक्स चोरी, झूठी गवाही, झूठा मुकदमा, परीक्षा में नकल, परीक्षार्थी का गलत मूल्यांकन, हफ्ता वसूली, जबरन चंदा लेना, न्यायाधीशों द्वारा पक्षपातपूर्ण निर्णय, पैसे लेकर वोट देना, वोट के लिए पैसा और शराब आदि बांटना, पैसे लेकर रिपोर्ट छापना, अपने कार्यों को करवाने के लिए नकद राशि देना यह सब भ्रष्टाचार ही है।
भ्रष्टाचार के कारण :* असंतोष - जब किसी को अभाव के कारण कष्ट होता है तो वह भ्रष्ट आचरण करने के लिए विवश हो जाता है।
* स्वार्थ और असमानता : असमानता, आर्थिक, सामाजिक या सम्मान, पद -प्रतिष्ठा के कारण भी व्यक्ति अपने आपको भ्रष्ट बना लेता है। हीनता और ईर्ष्या की भावना से शिकार हुआ व्यक्ति भ्रष्टाचार को अपनाने के लिए विवश हो जाता है। साथ ही रिश्वतखोरी, भाई-भतीजावाद आदि भी भ्रष्टाचार को जन्म देते हैं।
* भारत में बढ़ता भ्रष्टाचार : भ्रष्टाचार एक बीमारी की तरह है। आज भारत देश में भ्रष्टाचार तेजी से बढ़ रहा है। इसकी जड़े तेजी से फैल रही है। यदि समय रहते इसे नहीं रोका गया तो यह पूरे देश को अपनी चपेट में ले लेगा। भ्रष्टाचार का प्रभाव अत्यंत व्यापक है।
जीवन का कोई भी क्षेत्र इसके प्रभाव से मुक्त नहीं है। यदि हम इस वर्ष की ही बात करें तो ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं जो कि भ्रष्टाचार के बढ़ते प्रभाव को दर्शाते हैं। जैसे आईपील में खिलाड़ियों की स्पॉट फिक्सिंग, नौकरियों में अच्छी पोस्ट पाने की लालसा में कई लोग रिश्वत देने से भी नहीं चूकते हैं। आज भारत का हर तबका इस बीमारी से ग्रस्त है।
* भ्रष्टाचार रोकने के उपाय : यह एक संक्रामक रोग की तरह है। समाज में विभिन्न स्तरों पर फैले भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कठोर दंड-व्यवस्था की जानी चाहिए। आज भ्रष्टाचार की स्थिति यह है कि व्यक्ति रिश्वत के मामले में पकड़ा जाता है और रिश्वत देकर ही छूट जाता है।
जब तक इस अपराध के लिए को कड़ा दंड नही दिया जाएगा तब तक यह बीमारी दीमक की तरह पूरे देश को खा जाएगी। लोगों को स्वयं में ईमानदारी विकसित करना होगी। आने वाली पीढ़ी तक सुआचरण के फायदे पहुंचाने होंगे।
* उपसंहार : भ्रष्टाचार हमारे नैतिक जीवन मूल्यों पर सबसे बड़ा प्रहार है। भ्रष्टाचार से जुड़े लोग अपने स्वार्थ में अंधे होकर राष्ट्र का नाम बदनाम कर रहे हैं।
भ्रष्टाचार विरोधी दिवस : दुनियाभर में भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए ही 9 दिसंबर को 'अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस' मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 31 अक्टूबर 2003 को एक प्रस्ताव पारित कर 'अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस' मनाए जाने की घोषणा की। भ्रष्टाचार के खिलाफ संपूर्ण राष्ट्र एवं दुनिया का इस जंग में शामिल होना एक शुभ घटना कही जा सकती है, क्योंकि भ्रष्टाचार आज किसी एक देश की नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व की समस्या है।
भ्रष्टाचार मिटाने की शुरुआत खुद से
आज सारी दुनिया जिस मुल्क को, जिस मुल्क की तरक़्क़ी को आदर और सम्मान के साथ देख रही है, वह भारत है. लोग कहते हैं कि हिंदुस्तान में सब कुछ मिलता है, जी हां हमारे पास सब कुछ है.
लेकिन हमें यह कहते हुए शर्म भी आती है और अफ़सोस भी होता है कि हमारे पास ईमानदारी नहीं है. हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भ्रष्टाचार कितनी गहराई तक उतर चुका है और किस तरह से बेईमानी एक राष्ट्रीय मजबूरी बनकर हमारी नसों में समा चुकी है इसका सही अंदाज़ा करने के लिए मैं आपको एक कहानी सुनाना चाहता हूं.
एक गांव के स्कूल में इंटरवल के दौरान एक कुल्फी बेचने वाला अपनी साइकिल पर आता था और बच्चों में कुल्फियां बेचा करता था. उसका रोज़गार और बच्चों की पसंद, दोनों एक दूसरे की ज़रूरत थे. इंटरवल में उसकी साइकिल के चारों तरफ़ भीड़ लग जाती. ऐसे में कुछ शरारती लोग उसकी आंख घूमते ही कुल्फ़ी के डिब्बे में हाथ डाल कर कुछ कुल्फियां ले उड़ते. कुल्फियां कम होने का शक तो उसे होता, लेकिन रंगे हाथ न पकड़ पाने की वजह से वह कुछ कर नहीं पाता था.
एक दिन उसने एक अजनबी हाथ को तब पकड़ लिया जब वह डिब्बे में ही था. वह लड़ पड़ा, तो इस लड़ाई का फ़ायदा उठाकर कुछ और हाथों ने सफ़ाई दिखा दी. यह देखकर कुल्फ़ीवाले ने अपना आपा खो दिया. फिर तो लूटने वालों के हौसले और बुलंद हो गये. जब क़ुल्फ़ीवाले को यह अहसास हुआ कि उसकी सारी कुल्फ़ियां लुट जाएंगी तो वह भी लूटने वालों में शामिल हो गया और अपने दोनों हाथों में जितनी भी क़ुल्फियां आ सकती थीं उन्हें लूट-लूट कर जल्दी जल्दी खाने लगा.
जी हां, हमारे यहां बेईमानी, भ्रष्टाचार और खुली लूट का यही आलम हैं. इससे पहले कि कोई दूसरा लूट ले. हम ख़ुद ही ख़ुद को लूट रहे हैं.
जुर्म, वारदात, नाइंसाफ़ी, बेईमानी और भ्रष्टाचार का सैकड़ों साल पुराना क़िस्सा नई पोशाक पहनकर एकबार फिर हमारे दिलों पर दस्तक दे रहा है. रगों में लहू बन कर उतर चुका भ्रष्टाचार का कैंसर. आखिरी ऑपरेशन की मांग कर रहा है. अवाम सियासत के बीज बोकर हुकूमत की रोटियां सेंकने वाले भ्रष्ट नेताओं के मुस्तकबिल का फैसला करना चाहती है. ये गुस्सा एक मिसाल है कि हजारों मोमबत्तियां जब एक मकसद के लिए एक साथ जल उठती हैं तो हिंदुस्तान का हिंदुस्तानियत पर यकीन और बढ़ जाता है.
बेईमान सियासत के इस न ख़त्म होने वाले दंगल में अक़ीदत और ईमानदारी दोनों थक कर चूर हो चुके हैं. मगर फिर भी बेईमान नेताओं, मंत्रियों, अफसरों और बाबुओं की बेशर्मी को देखते हुए लड़ने पर मजबूर हैं. बेईमान और शातिर सियासतदानों की नापाक चालें हमें चाहे जितना जख़्मी कर जाएं. हमारे मुल्क के 'अन्ना' हजारों के आगे दम तोड़ देती हैं.
महंगाई, ग़रीबी, भूख और बेरोज़गारी जैसे अहम मुद्दों से रोज़ाना और लगातार जूझती देश की अवाम के सामने भ्रष्टाचार
इस वक्त सबसे बड़ा मुद्दा और सबसे खतरनाक बीमारी है. अगर इस बीमारी से हम पार पा गए तो यकीन मानिए सोने की चिड़िया वाला वही सुनहरा हिंदुस्तान एक बार फिर हम सबकी नजरों के सामने होगा. पर क्या ऐसा हो पाएगा? क्या आप ऐसा कर पाएंगे? जी हां, हम आप से पूछ रहे हैं. क्योंकि सिर्फ क्रांति की मशालें जला कर, नारे लगा कर, आमरण अनशन पर बैठ कर या सरकार को झुका कर आप भ्रष्टाचार की जंग नहीं जीत सकते. इस जंग को जीतने के लिए खुद आपका बदलना जरूरी है. क्योंकि भ्रष्टाचार और बेईमानी को बढ़ावा देने में आप भी कम गुनहगार नहीं हैं.
मंदिर में दर्शन के लिए, स्कूल अस्पताल में एडमिशन के लिए, ट्रेन में रिजर्वेशन के लिए, राशनकार्ड, लाइसेंस, पासपोर्ट के लिए, नौकरी के लिए, रेड लाइट पर चालान से बचने के लिए, मुकदमा जीतने और हारने के लिए, खाने के लिए, पीने के लिए, कांट्रैक्ट लेने के लिए, यहां तक कि सांस लेने के लिए भी आप ही तो रिश्वत देते हैं. अरे और तो और अपने बच्चों तक को आप ही तो रिश्वत लेना और देना सिखाते हैं. इम्तेहान में पास हुए तो घड़ी नहीं तो छड़ी.
अब आप ही बताएं कि क्या गुनहगार सिर्फ नेता, अफसर और बाबू हैं? आप एक बार ठान कर तो देखिए कि आज के बाद किसी को रिश्वत नहीं देंगे. फिर देखिए ये भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी कैसे खत्म होते हैं.
आंकड़े कहते हैं कि 2009 में भारत में अपने-अपने काम निकलवाने के लिए 54 फीसदी हिंदुस्तानियों ने रिश्वत दी. आंकड़े कहते हैं कि एशियाई प्रशांत के 16 देशों में भारत का शुमार चौथे सबसे भ्रष्ट देशों में होता है. आंकड़े कहते हैं कि कुल 169 देशों में भ्रष्टाचार के मामले में हम 84वें नंबर पर हैं.
आंकड़े ये भी बताते हैं कि 1992 से अब तक यानी महज 19 सालों में देश के 73 लाख करोड़ रुपए घोटाले की भेंट चढ़ गए. इतनी बड़ी रकम से हम 2 करोड़ 40 लाख प्राइमरी हेल्थसेंटर बना सकते थे. करीब साढ़े 14 करोड़ कम बजट के मकान बना सकते थे. नरेगा जैसी 90 और स्कीमें शुरू हो सकती थीं. करीब 61 करोड़ लोगों को नैनो कार मुफ्त मिल सकती थी. हर हिंदुस्तानी को 56 हजार रुपये या फिर गरीबी की रेखा से नीचे रह रहे सभी 40 करोड़ लोगों में से हर एक को एक लाख 82 हजार रुपये मिल सकते थे. यानी पूरे देश की तस्वीर बदल सकती थी.
तस्वीर दिखाती है कि भारत गरीबों का देश है. पर दुनिया के सबसे बड़े अमीर यहीं बसते हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो स्विस बैंक के खाते में सबसे ज्यादा पैसे हमारा जमा नहीं होता. आंकड़ों के मुताबिक स्विस बैंक में भारतीयों के कुल 65,223 अरब रुपये जमा है. यानी जितना धन हमारा स्विस बैंक में जमा है, वह हमारे जीडीपी का 6 गुना है.
आंकड़े ये भी बताते हैं कि भारत को अपने देश के लोगों का पेट भरने और देश चलाने के लिए 3 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लेना पड़ता है. यही वजह है कि जहां एक तरफ प्रति व्यक्ति आय बढ़ रही है, वही दूसरी तरफ प्रति भारतीय पर कर्ज भी बढ़ रहा है. अगर स्विस बैंकों में जमा ब्लैक मनी का 30 से 40 फीसदी भी देश में आ गया तो हमें कर्ज के लिए आईएमएफ या विश्व बैंक के सामने हाथ नहीं फैलाने पड़ेंगे.
स्विस बैंक में भारतीयों का जितना ब्लैक मनी जमा है, अगर वह सारा पैसा वापस आ जाए तो देश को बजट में 30 साल तक कोई टैक्स नहीं लगाना पड़ेगा. आम आदमी को इनकम टैक्स नहीं देना होगा और किसी भी चीज पर कस्टम या सेल टैक्स नहीं लगेगा.
सरकार सभी गांवों को सड़कों से जोड़ना चाहती है. इसके लिए 40 लाख करोड़ रुपये की जरूरत है. अगर स्विस बैंक से ब्लैक मनी वापस आ गया तो हर गांव तक चार लेन की सड़क पहुंच जाएगी.
जितना धन स्विस बैंक में भारतीयों का जमा है, उसे उसका आधा भी मिल जाए तो करीब 30 करोड़ नई नौकरियां पैदा की जा सकती है. हर हिंदुस्तानी को 2000 रुपये मुफ्त दिए जा सकते हैं. और यह सिलसिला 30 साल तक जारी रह सकता है. यानी देश से गरीबी पूरी तरह दूर हो सकती है.
पर ऐसा हो इसके लिए आपका बदलना जरूरी है. वर्ना 'अन्ना हजारों' की मुहिम बेकार चली जाएगी.
दिल्ली का जन्तर-मंतर. यानी वह दहलीज़ जहां से देश का ग़ुस्सा अपने ज़िल्लेइलीही से फ़रियाद करता है. ये फ़रियादें दराबर के किस हिस्से तक पहुंचने में कामयाब होती हैं इसी बात से फ़रियाद के क़द और उसकी हैसियत का अंदाज़ा लगाया जाता है. लेकिन इस बार चोट थोड़ी गहरी है.
अन्ना देश के अन्ना हैं. इस बार जंतर मंतर पर ग़म और ग़ुस्से का अजीब संगम है. किसी को आम आदमी का त्योहार देखना हो तो उसे जंतर मंतर का नज़ारा ज़रूर करना चाहिये. हर तरफ़ बस एक ही शोर है कि शायद अन्ना का ये अनशन आम आदमी के हक़ में एक ऐसा क़ानून बना सके जिसके डर से भ्रष्टाचारी को पसीने आ जाएं. क्योंकि अन्ना के समर्थन में आने वालों का ये मानना है कि अन्ना जो कहते हैं सही कहते हैं.
भारत में वैसे तो अनेक समस्याएं विद्यमान हैं जिसके कारण देश की प्रगति धीमी है। उनमें प्रमुख है बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा, आदि लेकिन उन सबमें वर्तमान में सबसे ज्यादा यदि कोई देश के विकास को बाधित कर रहा है तो वह है भ्रष्टाचार की समस्या। आज इससे सारा देश संत्रस्त है। लोकतंत्र की जड़ो को खोखला करने का कार्य काफी समय से इसके द्वारा हो रहा है। और इस समस्या की हद यह है कि इसके लिए भारत के एक पूर्व प्रधानमंत्री तक को कहना पड़ गया था कि रूपये में मात्र बीस पैसे ही दिल्ली से आम जनता तक पंहुच पाता है।
वास्तव में यह स्थिति सिर्फ एक दिन में ही नहीं बनी है। भारत को जैसे ही अंग्रेजी दासता से मुक्ति मिलने वाली थी उसे खुली हवां में सांस लेने का मौका मिलने वाला था उसी समय सत्तालोलुप नेताओं ने देश का विभाजन कर दिया और उसी समय स्पष्ट हो गया था कि कुछ विशिष्ट वर्ग अपनी राजनैतिक भूख को शांत करने के लिए देश हित को ताक मे रखने के लिए तैयार हो गये हैं। खैर बीती ताहि बिसार दे। उस समय की बात को छोड वर्तमान स्थिति में दृष्टि डालें तो काफी भयावह मंजर सामने आता है। भ्रष्टाचार ने पूरे राष्ट्र को अपने आगोश में ले लिया है। वास्तव में भ्रष्टाचार के लिए आज सारा तंत्र जिम्मेदार है। एक आम आदमी भी किसी शासकीय कार्यालय में अपना कार्य शीध्र करवाने के लिए सामने वाले को बंद लिफाफा सहज में थमाने को तैयार है। 100 में से 80 आदमी आज इसी तरह कार्य करवाने के फिराक में है। और जब एक बार किसी को अवैध ढंग से ऐसी रकम मिलने लग जाये तो निश्चित ही उसकी तृष्णा और बढेगी और उसी का परिणाम आज सारा भारत देख रहा है।
भ्रष्टाचार में सिर्फ शासकीय कार्यालयों में लेने देनेवाले घूस को ही शामिल नहीं किया जा सकता बल्कि इसके अंदर वह सारा आचरण शामिल होता है जो एक सभ्य समाज के सिर को नीचा करने में मजबूर कर देता है। भ्रष्टाचार के इस तंत्र में आज सर्वाधिक प्रभाव राजनेताओं का ही दिखाई देता है इसका प्रत्यक्ष प्रमाण तो तब देखने को मिला जब नागरिकों द्वारा चुने हुए सांसदों के द्वारा संसद भवन में प्रश्न तक पूछने के लिए पैसे लेने का प्रमाण कुछ टीवी चैनलों द्वारा प्रदर्शित किया गया।
कभी कफन घोटाला, कभी चारा – भूसा घोटाला, कभी दवा घोटाला, कभी ताबूत घोटाला तो कभी खाद घोटाला आखिर ये सब क्या इंगित करता है। ये सारे भ्रष्टाचार के एक उदाहरण मात्र हैं।
बात करें भारत को भ्रष्टाचार से बचाने के लिए तो जिन लोगों को आगे आकर भ्रष्टाचार को समाप्त करने का प्रयास कर समाज को दिशा निर्देश देना चाहिए वे स्वयं ही भ्रष्ट आचरण में आकंठ डूबे दिखाई देते है।
वास्तव में देश से यदि भ्रष्टाचार मिटाना है तो ने सिर्फ साफ स्वच्छ छवि के नेताओं का चयन करना होगा बल्कि लोकतंत्र के नागरिको को भी सामने आना होगा। उन्हें प्राणपण से यह प्रयत्न करना होगा कि उन्हें भ्रष्ट लोगों को समाज से न सिर्फ बहिष्कृत करना होगा बल्कि उच्चस्तर पर भी भ्रष्टाचार में संलिप्त लोगों का बायकॉट करना होगा। अपनी आम जरूरतों को पूरा करने एवं शीर्ध्रता से निपटाने के लिए बंद लिफाफे की प्रवृत्ति से बचना होगा। कुल मिला जब तब लोकतंत्र में आम नागरिक एवं उनके नेतृत्व दोनों ही मिलकर यह नहीं चाहेंगे तब तक भ्रष्टाचार के जिन्न से बच पाना असंभव ही है।
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जब कोई व्यक्ति न्याय व्यवस्था के मान्य नियमों के विरूद्ध जाकर अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए गलत आचरण करने लगता है तो वह व्यक्ति भ्रष्टाचारी कहलाता है। आज भारत जैसे सोने की चिड़िया कहलाने वाले देश में भ्रष्टाचार अपनी जड़े फैला रहा है। आज भारत में ऐसे कई व्यक्ति मौजूद हैं जो भ्रष्टाचारी है। आज पूरी दुनिया में भारत भ्रष्टाचार के मामले में 94वें स्थान पर है। भ्रष्टाचार के कई रंग-रूप है जैसे रिश्वत, काला-बाजारी, जान-बूझकर दाम बढ़ाना, पैसा लेकर काम करना, सस्ता सामान लाकर महंगा बेचना आदि। भ्रष्टाचार के कई कारण है।
भ्रष्टाचार में मुख्य रिश्वत, चुनाव में धांधली, ब्लैकमेल करना, टैक्स चोरी, झूठी गवाही, झूठा मुकदमा, परीक्षा में नकल, परीक्षार्थी का गलत मूल्यांकन, हफ्ता वसूली, जबरन चंदा लेना, न्यायाधीशों द्वारा पक्षपातपूर्ण निर्णय, पैसे लेकर वोट देना, वोट के लिए पैसा और शराब आदि बांटना, पैसे लेकर रिपोर्ट छापना, अपने कार्यों को करवाने के लिए नकद राशि देना यह सब भ्रष्टाचार ही है।
भ्रष्टाचार के कारण :* असंतोष - जब किसी को अभाव के कारण कष्ट होता है तो वह भ्रष्ट आचरण करने के लिए विवश हो जाता है।
* स्वार्थ और असमानता : असमानता, आर्थिक, सामाजिक या सम्मान, पद -प्रतिष्ठा के कारण भी व्यक्ति अपने आपको भ्रष्ट बना लेता है। हीनता और ईर्ष्या की भावना से शिकार हुआ व्यक्ति भ्रष्टाचार को अपनाने के लिए विवश हो जाता है। साथ ही रिश्वतखोरी, भाई-भतीजावाद आदि भी भ्रष्टाचार को जन्म देते हैं।
* भारत में बढ़ता भ्रष्टाचार : भ्रष्टाचार एक बीमारी की तरह है। आज भारत देश में भ्रष्टाचार तेजी से बढ़ रहा है। इसकी जड़े तेजी से फैल रही है। यदि समय रहते इसे नहीं रोका गया तो यह पूरे देश को अपनी चपेट में ले लेगा। भ्रष्टाचार का प्रभाव अत्यंत व्यापक है।
जीवन का कोई भी क्षेत्र इसके प्रभाव से मुक्त नहीं है। यदि हम इस वर्ष की ही बात करें तो ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं जो कि भ्रष्टाचार के बढ़ते प्रभाव को दर्शाते हैं। जैसे आईपील में खिलाड़ियों की स्पॉट फिक्सिंग, नौकरियों में अच्छी पोस्ट पाने की लालसा में कई लोग रिश्वत देने से भी नहीं चूकते हैं। आज भारत का हर तबका इस बीमारी से ग्रस्त है।
* भ्रष्टाचार रोकने के उपाय : यह एक संक्रामक रोग की तरह है। समाज में विभिन्न स्तरों पर फैले भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कठोर दंड-व्यवस्था की जानी चाहिए। आज भ्रष्टाचार की स्थिति यह है कि व्यक्ति रिश्वत के मामले में पकड़ा जाता है और रिश्वत देकर ही छूट जाता है।
जब तक इस अपराध के लिए को कड़ा दंड नही दिया जाएगा तब तक यह बीमारी दीमक की तरह पूरे देश को खा जाएगी। लोगों को स्वयं में ईमानदारी विकसित करना होगी। आने वाली पीढ़ी तक सुआचरण के फायदे पहुंचाने होंगे।
* उपसंहार : भ्रष्टाचार हमारे नैतिक जीवन मूल्यों पर सबसे बड़ा प्रहार है। भ्रष्टाचार से जुड़े लोग अपने स्वार्थ में अंधे होकर राष्ट्र का नाम बदनाम कर रहे हैं।
भ्रष्टाचार विरोधी दिवस : दुनियाभर में भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए ही 9 दिसंबर को 'अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस' मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 31 अक्टूबर 2003 को एक प्रस्ताव पारित कर 'अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस' मनाए जाने की घोषणा की। भ्रष्टाचार के खिलाफ संपूर्ण राष्ट्र एवं दुनिया का इस जंग में शामिल होना एक शुभ घटना कही जा सकती है, क्योंकि भ्रष्टाचार आज किसी एक देश की नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व की समस्या है।
भ्रष्टाचार मिटाने की शुरुआत खुद से
आज सारी दुनिया जिस मुल्क को, जिस मुल्क की तरक़्क़ी को आदर और सम्मान के साथ देख रही है, वह भारत है. लोग कहते हैं कि हिंदुस्तान में सब कुछ मिलता है, जी हां हमारे पास सब कुछ है.
लेकिन हमें यह कहते हुए शर्म भी आती है और अफ़सोस भी होता है कि हमारे पास ईमानदारी नहीं है. हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भ्रष्टाचार कितनी गहराई तक उतर चुका है और किस तरह से बेईमानी एक राष्ट्रीय मजबूरी बनकर हमारी नसों में समा चुकी है इसका सही अंदाज़ा करने के लिए मैं आपको एक कहानी सुनाना चाहता हूं.
एक गांव के स्कूल में इंटरवल के दौरान एक कुल्फी बेचने वाला अपनी साइकिल पर आता था और बच्चों में कुल्फियां बेचा करता था. उसका रोज़गार और बच्चों की पसंद, दोनों एक दूसरे की ज़रूरत थे. इंटरवल में उसकी साइकिल के चारों तरफ़ भीड़ लग जाती. ऐसे में कुछ शरारती लोग उसकी आंख घूमते ही कुल्फ़ी के डिब्बे में हाथ डाल कर कुछ कुल्फियां ले उड़ते. कुल्फियां कम होने का शक तो उसे होता, लेकिन रंगे हाथ न पकड़ पाने की वजह से वह कुछ कर नहीं पाता था.
एक दिन उसने एक अजनबी हाथ को तब पकड़ लिया जब वह डिब्बे में ही था. वह लड़ पड़ा, तो इस लड़ाई का फ़ायदा उठाकर कुछ और हाथों ने सफ़ाई दिखा दी. यह देखकर कुल्फ़ीवाले ने अपना आपा खो दिया. फिर तो लूटने वालों के हौसले और बुलंद हो गये. जब क़ुल्फ़ीवाले को यह अहसास हुआ कि उसकी सारी कुल्फ़ियां लुट जाएंगी तो वह भी लूटने वालों में शामिल हो गया और अपने दोनों हाथों में जितनी भी क़ुल्फियां आ सकती थीं उन्हें लूट-लूट कर जल्दी जल्दी खाने लगा.
जी हां, हमारे यहां बेईमानी, भ्रष्टाचार और खुली लूट का यही आलम हैं. इससे पहले कि कोई दूसरा लूट ले. हम ख़ुद ही ख़ुद को लूट रहे हैं.
जुर्म, वारदात, नाइंसाफ़ी, बेईमानी और भ्रष्टाचार का सैकड़ों साल पुराना क़िस्सा नई पोशाक पहनकर एकबार फिर हमारे दिलों पर दस्तक दे रहा है. रगों में लहू बन कर उतर चुका भ्रष्टाचार का कैंसर. आखिरी ऑपरेशन की मांग कर रहा है. अवाम सियासत के बीज बोकर हुकूमत की रोटियां सेंकने वाले भ्रष्ट नेताओं के मुस्तकबिल का फैसला करना चाहती है. ये गुस्सा एक मिसाल है कि हजारों मोमबत्तियां जब एक मकसद के लिए एक साथ जल उठती हैं तो हिंदुस्तान का हिंदुस्तानियत पर यकीन और बढ़ जाता है.
बेईमान सियासत के इस न ख़त्म होने वाले दंगल में अक़ीदत और ईमानदारी दोनों थक कर चूर हो चुके हैं. मगर फिर भी बेईमान नेताओं, मंत्रियों, अफसरों और बाबुओं की बेशर्मी को देखते हुए लड़ने पर मजबूर हैं. बेईमान और शातिर सियासतदानों की नापाक चालें हमें चाहे जितना जख़्मी कर जाएं. हमारे मुल्क के 'अन्ना' हजारों के आगे दम तोड़ देती हैं.
महंगाई, ग़रीबी, भूख और बेरोज़गारी जैसे अहम मुद्दों से रोज़ाना और लगातार जूझती देश की अवाम के सामने भ्रष्टाचार
इस वक्त सबसे बड़ा मुद्दा और सबसे खतरनाक बीमारी है. अगर इस बीमारी से हम पार पा गए तो यकीन मानिए सोने की चिड़िया वाला वही सुनहरा हिंदुस्तान एक बार फिर हम सबकी नजरों के सामने होगा. पर क्या ऐसा हो पाएगा? क्या आप ऐसा कर पाएंगे? जी हां, हम आप से पूछ रहे हैं. क्योंकि सिर्फ क्रांति की मशालें जला कर, नारे लगा कर, आमरण अनशन पर बैठ कर या सरकार को झुका कर आप भ्रष्टाचार की जंग नहीं जीत सकते. इस जंग को जीतने के लिए खुद आपका बदलना जरूरी है. क्योंकि भ्रष्टाचार और बेईमानी को बढ़ावा देने में आप भी कम गुनहगार नहीं हैं.
मंदिर में दर्शन के लिए, स्कूल अस्पताल में एडमिशन के लिए, ट्रेन में रिजर्वेशन के लिए, राशनकार्ड, लाइसेंस, पासपोर्ट के लिए, नौकरी के लिए, रेड लाइट पर चालान से बचने के लिए, मुकदमा जीतने और हारने के लिए, खाने के लिए, पीने के लिए, कांट्रैक्ट लेने के लिए, यहां तक कि सांस लेने के लिए भी आप ही तो रिश्वत देते हैं. अरे और तो और अपने बच्चों तक को आप ही तो रिश्वत लेना और देना सिखाते हैं. इम्तेहान में पास हुए तो घड़ी नहीं तो छड़ी.
अब आप ही बताएं कि क्या गुनहगार सिर्फ नेता, अफसर और बाबू हैं? आप एक बार ठान कर तो देखिए कि आज के बाद किसी को रिश्वत नहीं देंगे. फिर देखिए ये भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी कैसे खत्म होते हैं.
आंकड़े कहते हैं कि 2009 में भारत में अपने-अपने काम निकलवाने के लिए 54 फीसदी हिंदुस्तानियों ने रिश्वत दी. आंकड़े कहते हैं कि एशियाई प्रशांत के 16 देशों में भारत का शुमार चौथे सबसे भ्रष्ट देशों में होता है. आंकड़े कहते हैं कि कुल 169 देशों में भ्रष्टाचार के मामले में हम 84वें नंबर पर हैं.
आंकड़े ये भी बताते हैं कि 1992 से अब तक यानी महज 19 सालों में देश के 73 लाख करोड़ रुपए घोटाले की भेंट चढ़ गए. इतनी बड़ी रकम से हम 2 करोड़ 40 लाख प्राइमरी हेल्थसेंटर बना सकते थे. करीब साढ़े 14 करोड़ कम बजट के मकान बना सकते थे. नरेगा जैसी 90 और स्कीमें शुरू हो सकती थीं. करीब 61 करोड़ लोगों को नैनो कार मुफ्त मिल सकती थी. हर हिंदुस्तानी को 56 हजार रुपये या फिर गरीबी की रेखा से नीचे रह रहे सभी 40 करोड़ लोगों में से हर एक को एक लाख 82 हजार रुपये मिल सकते थे. यानी पूरे देश की तस्वीर बदल सकती थी.
तस्वीर दिखाती है कि भारत गरीबों का देश है. पर दुनिया के सबसे बड़े अमीर यहीं बसते हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो स्विस बैंक के खाते में सबसे ज्यादा पैसे हमारा जमा नहीं होता. आंकड़ों के मुताबिक स्विस बैंक में भारतीयों के कुल 65,223 अरब रुपये जमा है. यानी जितना धन हमारा स्विस बैंक में जमा है, वह हमारे जीडीपी का 6 गुना है.
आंकड़े ये भी बताते हैं कि भारत को अपने देश के लोगों का पेट भरने और देश चलाने के लिए 3 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लेना पड़ता है. यही वजह है कि जहां एक तरफ प्रति व्यक्ति आय बढ़ रही है, वही दूसरी तरफ प्रति भारतीय पर कर्ज भी बढ़ रहा है. अगर स्विस बैंकों में जमा ब्लैक मनी का 30 से 40 फीसदी भी देश में आ गया तो हमें कर्ज के लिए आईएमएफ या विश्व बैंक के सामने हाथ नहीं फैलाने पड़ेंगे.
स्विस बैंक में भारतीयों का जितना ब्लैक मनी जमा है, अगर वह सारा पैसा वापस आ जाए तो देश को बजट में 30 साल तक कोई टैक्स नहीं लगाना पड़ेगा. आम आदमी को इनकम टैक्स नहीं देना होगा और किसी भी चीज पर कस्टम या सेल टैक्स नहीं लगेगा.
सरकार सभी गांवों को सड़कों से जोड़ना चाहती है. इसके लिए 40 लाख करोड़ रुपये की जरूरत है. अगर स्विस बैंक से ब्लैक मनी वापस आ गया तो हर गांव तक चार लेन की सड़क पहुंच जाएगी.
जितना धन स्विस बैंक में भारतीयों का जमा है, उसे उसका आधा भी मिल जाए तो करीब 30 करोड़ नई नौकरियां पैदा की जा सकती है. हर हिंदुस्तानी को 2000 रुपये मुफ्त दिए जा सकते हैं. और यह सिलसिला 30 साल तक जारी रह सकता है. यानी देश से गरीबी पूरी तरह दूर हो सकती है.
पर ऐसा हो इसके लिए आपका बदलना जरूरी है. वर्ना 'अन्ना हजारों' की मुहिम बेकार चली जाएगी.
दिल्ली का जन्तर-मंतर. यानी वह दहलीज़ जहां से देश का ग़ुस्सा अपने ज़िल्लेइलीही से फ़रियाद करता है. ये फ़रियादें दराबर के किस हिस्से तक पहुंचने में कामयाब होती हैं इसी बात से फ़रियाद के क़द और उसकी हैसियत का अंदाज़ा लगाया जाता है. लेकिन इस बार चोट थोड़ी गहरी है.
अन्ना देश के अन्ना हैं. इस बार जंतर मंतर पर ग़म और ग़ुस्से का अजीब संगम है. किसी को आम आदमी का त्योहार देखना हो तो उसे जंतर मंतर का नज़ारा ज़रूर करना चाहिये. हर तरफ़ बस एक ही शोर है कि शायद अन्ना का ये अनशन आम आदमी के हक़ में एक ऐसा क़ानून बना सके जिसके डर से भ्रष्टाचारी को पसीने आ जाएं. क्योंकि अन्ना के समर्थन में आने वालों का ये मानना है कि अन्ना जो कहते हैं सही कहते हैं.
भारत में वैसे तो अनेक समस्याएं विद्यमान हैं जिसके कारण देश की प्रगति धीमी है। उनमें प्रमुख है बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा, आदि लेकिन उन सबमें वर्तमान में सबसे ज्यादा यदि कोई देश के विकास को बाधित कर रहा है तो वह है भ्रष्टाचार की समस्या। आज इससे सारा देश संत्रस्त है। लोकतंत्र की जड़ो को खोखला करने का कार्य काफी समय से इसके द्वारा हो रहा है। और इस समस्या की हद यह है कि इसके लिए भारत के एक पूर्व प्रधानमंत्री तक को कहना पड़ गया था कि रूपये में मात्र बीस पैसे ही दिल्ली से आम जनता तक पंहुच पाता है।
वास्तव में यह स्थिति सिर्फ एक दिन में ही नहीं बनी है। भारत को जैसे ही अंग्रेजी दासता से मुक्ति मिलने वाली थी उसे खुली हवां में सांस लेने का मौका मिलने वाला था उसी समय सत्तालोलुप नेताओं ने देश का विभाजन कर दिया और उसी समय स्पष्ट हो गया था कि कुछ विशिष्ट वर्ग अपनी राजनैतिक भूख को शांत करने के लिए देश हित को ताक मे रखने के लिए तैयार हो गये हैं। खैर बीती ताहि बिसार दे। उस समय की बात को छोड वर्तमान स्थिति में दृष्टि डालें तो काफी भयावह मंजर सामने आता है। भ्रष्टाचार ने पूरे राष्ट्र को अपने आगोश में ले लिया है। वास्तव में भ्रष्टाचार के लिए आज सारा तंत्र जिम्मेदार है। एक आम आदमी भी किसी शासकीय कार्यालय में अपना कार्य शीध्र करवाने के लिए सामने वाले को बंद लिफाफा सहज में थमाने को तैयार है। 100 में से 80 आदमी आज इसी तरह कार्य करवाने के फिराक में है। और जब एक बार किसी को अवैध ढंग से ऐसी रकम मिलने लग जाये तो निश्चित ही उसकी तृष्णा और बढेगी और उसी का परिणाम आज सारा भारत देख रहा है।
भ्रष्टाचार में सिर्फ शासकीय कार्यालयों में लेने देनेवाले घूस को ही शामिल नहीं किया जा सकता बल्कि इसके अंदर वह सारा आचरण शामिल होता है जो एक सभ्य समाज के सिर को नीचा करने में मजबूर कर देता है। भ्रष्टाचार के इस तंत्र में आज सर्वाधिक प्रभाव राजनेताओं का ही दिखाई देता है इसका प्रत्यक्ष प्रमाण तो तब देखने को मिला जब नागरिकों द्वारा चुने हुए सांसदों के द्वारा संसद भवन में प्रश्न तक पूछने के लिए पैसे लेने का प्रमाण कुछ टीवी चैनलों द्वारा प्रदर्शित किया गया।
कभी कफन घोटाला, कभी चारा – भूसा घोटाला, कभी दवा घोटाला, कभी ताबूत घोटाला तो कभी खाद घोटाला आखिर ये सब क्या इंगित करता है। ये सारे भ्रष्टाचार के एक उदाहरण मात्र हैं।
बात करें भारत को भ्रष्टाचार से बचाने के लिए तो जिन लोगों को आगे आकर भ्रष्टाचार को समाप्त करने का प्रयास कर समाज को दिशा निर्देश देना चाहिए वे स्वयं ही भ्रष्ट आचरण में आकंठ डूबे दिखाई देते है।
वास्तव में देश से यदि भ्रष्टाचार मिटाना है तो ने सिर्फ साफ स्वच्छ छवि के नेताओं का चयन करना होगा बल्कि लोकतंत्र के नागरिको को भी सामने आना होगा। उन्हें प्राणपण से यह प्रयत्न करना होगा कि उन्हें भ्रष्ट लोगों को समाज से न सिर्फ बहिष्कृत करना होगा बल्कि उच्चस्तर पर भी भ्रष्टाचार में संलिप्त लोगों का बायकॉट करना होगा। अपनी आम जरूरतों को पूरा करने एवं शीर्ध्रता से निपटाने के लिए बंद लिफाफे की प्रवृत्ति से बचना होगा। कुल मिला जब तब लोकतंत्र में आम नागरिक एवं उनके नेतृत्व दोनों ही मिलकर यह नहीं चाहेंगे तब तक भ्रष्टाचार के जिन्न से बच पाना असंभव ही है।
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